मित्रों ,कभी कभी कुछ भाव हैं जो गीत की शक्ल में ही आते हैं तब मैं न चाहते हुए भी गीत लिख लेती हूँ हालाँकि गीत मेरी विधा नही है .इस गीत की प्रेरणा आदरणीय बुद्धिनाथ मिश्र जी के एक प्रसिद्ध गीत -"एक बार जाल और फेंक रे मछेरे ,जाने किस मछली में बंधन की चाह हो "से मिली और ये गीत बना, वही गीत यहाँ प्रस्तुत है।
चाह नहीं बंधन में बंधने की अब कोई ,
अब तो ये जीवन ही मेरा विस्तार है ।
कुछ बंधन स्वर्णिम हैं ,
कुछ बंधन चमकीले ।
कुछ बंधन फूलों से ,
कुछ लगते हैं ढीले ।
बंधन तो बंधन हैं ,
मुझको इंकार है ।
कुछ बंधन ममता के ,
कुछ हैं दुलार के ।
कुछ बंधन देह के हैं ,
कुछ हैं प्रीत -प्यार के ।
बंधन संबंधों में,
कर रहे दरार हैं ।
कोई कहे बंधन ही ,
जीवन अनुशासन है ।
कोई कहे आजादी ,
सत्य से पलायन है ।
औरों के मत -अभिमत ,
कब मुझे स्वीकार हैं ?
सब बंधन टूटेंगे ,
जाना है एक दिन ।
सब पीछे छूटेंगे ,
जाना है एक दिन ।
फ़िर इतना क्यूँ बांधे,
नश्वर संसार है ।
चाह नही बंधन में बंधने की अब कोई ,
अब तो ये जीवन ही मेरा विस्तार है .
रविवार, 17 मई 2009
शुक्रवार, 15 मई 2009
टुकडा -टुकडा जिंदगी
चलो ,इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें ।
एक चादर ,
जो कभी तेरा लिबास बन जाए ।
कभी मेरा लिबास बन जाए ।
और जब वक्त की धूप
हमारे सर पर आए ,
तो ये चादर हम दोनों का सरमाया बन जाए ।
चलो ,इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें ।
एक चादर ,जिसे ओढ़ कर हम
अपनी सपनों की दुनिया में खो जायें ।
जहाँ .......
एक शांत बहती नदी हो ।
जहाँ ...........
पुराने मन्दिर हों ।
जहाँ चाँद -तारों भरा आकाश हो ।
और जब मैं नींद से जागूँ ,
तो तू मेरे पास हो ।
एक चादर सी लें ।
एक चादर ,
जो कभी तेरा लिबास बन जाए ।
कभी मेरा लिबास बन जाए ।
और जब वक्त की धूप
हमारे सर पर आए ,
तो ये चादर हम दोनों का सरमाया बन जाए ।
चलो ,इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें ।
एक चादर ,जिसे ओढ़ कर हम
अपनी सपनों की दुनिया में खो जायें ।
जहाँ .......
एक शांत बहती नदी हो ।
जहाँ ...........
पुराने मन्दिर हों ।
जहाँ चाँद -तारों भरा आकाश हो ।
और जब मैं नींद से जागूँ ,
तो तू मेरे पास हो ।
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