रिश्ते
लोग ......
जो हर रिश्ते का एक नाम चाहते हैं ,
नहीं जानते ........कि कुछ रिश्ते ,
बिना नामों के
सदियों से
चलते आ रहे हैं ,पलते आ रहे हैं ।
ये रिश्ते हो सकते हैं किसी के भी बीच ।
जैसे ...
मनुष्य और मनुष्य के बीच ।
मनुष्य और पृकृति के बीच ।
मनुष्य और जानवर के बीच ।
मतलब ये
के किसी भी तरह के हो सकते हैं ये अनाम रिश्ते ।
आप ही बताइए ...?
कि लोग ....
जो हर रिश्ते का एक नाम चाहते हैं ।
क्या नाम देंगे ....?
कोयल और अमराई के रिश्ते को
क्या नाम देंगे ...?
उमंग और तरुणाई के रिश्ते को ।
क्या नाम देंगे ....?
बसंत और फूलों के रिश्ते को ।
क्या नाम देंगे ...?
सावन और झूलों के रिश्ते को ।
लोग .......
जो हर रिश्ते का एक नाम चाहते हैं ।
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009
मित्रों ,क्षमा प्रार्थी हूँ बहुत दिनों से आप लोगों से सम्पर्क नही हो पाया .कुछ काम की अधिकता और कुछ यात्रा -प्रवास के कारण .सो अब अपनी इस गलती को सुधारते हुए एक कविता पोस्ट कर रही हूँ कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव अवश्य दें।
मेरे लिए
आगे -आगे और दूर तक ,
मुझको चलना था एकाकी ।
इस यथार्थ की पगडण्डी पर ,
जो कंकरीली है ,पथरीली है, काँटों वाली ।
तुमने नाहक बिछा दिए हैं ,
सुगम राजपथ मेरे आगे
स्वपनलोक के ।
युगों -युगों तक और रात- दिन
मुझको जलना था एकाकी ,
बिना स्नेह के, बिना दीप के ,
अग्निशिखा बन
तुमने नाहक स्नेह भर दिया
इस दीपक में ।
उबड़ -खाबड़ जीवन पथ पर
मुझको चलना था एकाकी ,
अंधकार में, बिना सहारे ।
तुमने नाहक गिरते -गिरते बचा लिया है ।
थाम लिए मेरे कर अपने कर में ।
मेरे लिए
आगे -आगे और दूर तक ,
मुझको चलना था एकाकी ।
इस यथार्थ की पगडण्डी पर ,
जो कंकरीली है ,पथरीली है, काँटों वाली ।
तुमने नाहक बिछा दिए हैं ,
सुगम राजपथ मेरे आगे
स्वपनलोक के ।
युगों -युगों तक और रात- दिन
मुझको जलना था एकाकी ,
बिना स्नेह के, बिना दीप के ,
अग्निशिखा बन
तुमने नाहक स्नेह भर दिया
इस दीपक में ।
उबड़ -खाबड़ जीवन पथ पर
मुझको चलना था एकाकी ,
अंधकार में, बिना सहारे ।
तुमने नाहक गिरते -गिरते बचा लिया है ।
थाम लिए मेरे कर अपने कर में ।
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