काँस ,तितलियाँ ,हरसिंगार
काँस फिर फूले हैं खेतों की मेड़ों पर
यादों की तितलियाँ उड़ रही हैं
झुंड की झुंड .
तितलियाँ ..........
न रुकती हैं
न ठहरती हैं
न हाथ आती हैं
बस उडती ही चली जाती हैं
जाने कहाँ ..?
तुम्हारे संग साथ के हरसिंगार
कब के झर चुके
फूल जमीन पर हैं ....
खुशबू हवाओं में .
तितलियाँ झरे हुए फूलों पर ......
नहीं बैठतीं ......?