आकाश अपनी अनंत नीलिमा के साथ
फैला रहता है आँखों के सामने ,
हालाँकि मेरे सामने बस एक खिड़की है।
मैं अक्सर सोचती हूँ …
प्रेम के बारे में ,
उसके अनंत विस्तार के बारे में
जिसमें -
पेड़ -पौधे ,
चाँद - तारे,
समंदर आसमान ,
चिड़िया ,जंगल ,फूल -तितली ,
किताब ,गीत- कविता ,
देह -मन
और बांसुरी की धुन भी शामिल होती है।
हालाँकि मेरे सामने बस एक खिड़की है।
फैला रहता है आँखों के सामने ,
हालाँकि मेरे सामने बस एक खिड़की है।
मैं अक्सर सोचती हूँ …
प्रेम के बारे में ,
उसके अनंत विस्तार के बारे में
जिसमें -
पेड़ -पौधे ,
चाँद - तारे,
समंदर आसमान ,
चिड़िया ,जंगल ,फूल -तितली ,
किताब ,गीत- कविता ,
देह -मन
और बांसुरी की धुन भी शामिल होती है।
हालाँकि मेरे सामने बस एक खिड़की है।