शनिवार, 6 अक्तूबर 2012


काँस ,तितलियाँ ,हरसिंगार 



काँस फिर फूले हैं खेतों की मेड़ों पर
यादों की तितलियाँ उड़ रही हैं
 झुंड की झुंड .
तितलियाँ ..........
न रुकती हैं
न ठहरती हैं
न हाथ आती हैं
बस उडती ही चली जाती हैं
जाने कहाँ ..?

तुम्हारे संग साथ के हरसिंगार
कब के झर चुके
फूल जमीन पर हैं ....
खुशबू हवाओं में .

तितलियाँ झरे हुए फूलों पर ......
नहीं बैठतीं ......?