रविवार, 20 अक्तूबर 2013

आकाश अपनी अनंत नीलिमा के साथ
फैला रहता है आँखों के सामने ,

हालाँकि मेरे सामने बस  एक खिड़की है।

मैं अक्सर सोचती हूँ …
 प्रेम के बारे में ,
उसके अनंत विस्तार के बारे में
जिसमें -
पेड़ -पौधे ,
चाँद - तारे,
समंदर आसमान ,
चिड़िया ,जंगल ,फूल -तितली ,
किताब ,गीत- कविता ,
देह -मन
और बांसुरी की धुन भी शामिल होती है।

हालाँकि मेरे सामने बस एक खिड़की है।