सोमवार, 26 मई 2014


रविवार, 20 अक्तूबर 2013

आकाश अपनी अनंत नीलिमा के साथ
फैला रहता है आँखों के सामने ,

हालाँकि मेरे सामने बस  एक खिड़की है।

मैं अक्सर सोचती हूँ …
 प्रेम के बारे में ,
उसके अनंत विस्तार के बारे में
जिसमें -
पेड़ -पौधे ,
चाँद - तारे,
समंदर आसमान ,
चिड़िया ,जंगल ,फूल -तितली ,
किताब ,गीत- कविता ,
देह -मन
और बांसुरी की धुन भी शामिल होती है।

हालाँकि मेरे सामने बस एक खिड़की है।

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012


काँस ,तितलियाँ ,हरसिंगार 



काँस फिर फूले हैं खेतों की मेड़ों पर
यादों की तितलियाँ उड़ रही हैं
 झुंड की झुंड .
तितलियाँ ..........
न रुकती हैं
न ठहरती हैं
न हाथ आती हैं
बस उडती ही चली जाती हैं
जाने कहाँ ..?

तुम्हारे संग साथ के हरसिंगार
कब के झर चुके
फूल जमीन पर हैं ....
खुशबू हवाओं में .

तितलियाँ झरे हुए फूलों पर ......
नहीं बैठतीं ......?

बुधवार, 29 दिसंबर 2010


शुभ कामनाएं


लिखती हूँ तुम्हारा नाम
कई बार ............
गहरे नीले आकाश पर चमकते तारों से ,
बेतरतीब खिले हुए फूलों से ,
रेत से
और लहरों से भी .
कभी -कभी
अलसुबह पत्तियों पर पड़ी ओस से भी ,
लिखती हूँ तुम्हारा नाम
फिर -फिर .....
अनखुले गुलाबों की पंखुड़ियों पर ,
कुछ देर में उड़ जाने वाली चिड़िया के पंखों पर ,
अभी अभी उग आये सूरज की नर्म हथेलियों पर,
यहाँ तक की छुईमुई की बंद होती हुई पत्तियों पर भी
लिखती हूँ तुम्हारा नाम
कि

जब लहरें किनारों को छुएंगी,
ओस झर जाएगी पत्तों से .
गुलाब खिल जायेंगे ,
सूरज चमकने लगेगा .
चिड़िया उड़ जाएगी दूर.....
और खुल जाएँगी छुईमुई की पत्तियां
तब
शुभकामनाये पहुँच जाएँगी मेरी
तुम तक
जिनमें लिखा है मैंने
तुम्हारा नाम .

मंगलवार, 15 जून 2010


गुलमोहर के रंग फीके हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .
धूप के भी तीर तीखे हैं यहाँ पर ,

तुम नहीं हो .

तुम नहीं हो, और ये लम्बी दोपहरी
आँख की कोरों पे आके बूँद ठहरी .
कब गिरेगी, ना गिरेगी कौन जाने ?
कौन उंगली पर सम्हाले ....?

तुम नहीं हो .
गुलमोहर के रंग फीके हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .

तुम नहीं हो .......शाम थक जाती है अक्सर
फिर धधकती सेज पर सोती है थककर
सोचती हूँ रात गहरी है ? ..... के मेरी पीर गहरी ?
कौन सीने से लगा ले .........?

तुम नहीं हो .
धूप के भी तीर तीखे हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .

तुम नहीं हो भोर का पहला पहर है
कहीं सोया, कहीं जागा सा शहर है
एक लम्बी सी सड़क पर चल रही हूँ मैं अकेली .
कौन मेरा हाथ थामे .....?

तुम नहीं हो .

तुम नहीं हो ,प्रणय पथ का ये अनोखा ही सफ़र है
मैं यहाँ और दूर कितना हमसफ़र है
दूर रहकर साथ चलना ,साथ रहकर दूर होना .
कौन समझेगा ये रोना ...?

तुम नहीं हो

बुधवार, 20 जनवरी 2010

लो बसंत आ गया


मित्रों , एक पूरा साल आप लोगों की दोस्ती में कब बीता पता ही नहीं चला और फिर से बसंत का मौसम आगया .हमारे शहर में कड़ाके की ठण्ड के बीच भी अनंग सखा बसंत ने अपनी आमद दर्ज करा ही दी है ,जिसका प्रमाण बौरों से भरे हुए आम के वृक्षों ने दे दिया है .आज बसंत पंचमी है ,ऋतुराज बसंत के आने का संकेत .शीत से ठिठुरती हुई प्रकृति में नव प्राणों का संचार होने लगा है .वृक्षों ने पत्ते बदलना प्रारंभ कर दिया है ताकि नए रंगीन पत्तों और फूलों के साथ बसंत का स्वागत कर सकें .जब प्रकृति नई ऋतू के स्वागत में प्रसन्न है तो भला हम क्यों पीछे रहे ...?आप सब भी नए उत्साह से ,नई आशाओं के साथ बसंत का स्वागत करें इन्ही शुभेच्छाओं के साथ आप सब को ------ बसंत पंचमी की भीनी भीनी सुगंध भरी शुभकामनायें

गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

आने दो खुशियों से भरे नए साल को

सभी दोस्तों ,आदरणीयों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें
मित्रों,
जीवन आशाओं ,उमंगों और नवीनताओं से भरा हुआ एक रहस्य है जिसे केवल और केवल जीकर ही जाना जा सकता है .प्रतिदिन नया दिन होता है जिसमें बीते हुए कल से अलग कुछ होता है, इसलिए आप सभी को नववर्ष की इस नयी सुबह साल भर के हर दिन के लिए शुभकामनाएं कि आप सभी स्वस्थ रहें ,खुश रहें ,खुशियाँ बांटें और देखें की आपकी खुशियाँ चौगुनी होकर आपको मिलेंगी इन्ही शुभ कामनाओं के साथ नए साल के स्वागत में कुछ पंक्तियाँ -----


मन से निकल दो सब मैल को, मलाल को
आने दो खुशियों से भरे नए साल को

बीती सो बात गई ,
अंधियारी रात गई .
नव प्रभात आया है ,
लेकर सौगात नई

फैलने दो मन आँगन, प्यार के गुलाल को
आने दो खुशियों से भरे नए साल को

लेकर संकल्प नए ,
तलाशें विकल्प नए
दिन बीते ,युग बीते ,
फिर आये कल्प नये

क्या होगा ?कब होगा ?छोडो इस सवाल को
आने दो खुशियों से भरे नए साल को

खुशियाँ दें, गम ले लें
सुख- दुःख मिलकर झेलें
जीवन के खेल को ,
हँस -हँस कर हम खेलें

साथ आयें ,सुलझाएं जीवन जंजाल को
आने दो खुशियों से भरे नए साल को

सीमा