मंगलवार, 24 मार्च 2009

क्या लिखूं

नीला आकाश लिखूं ,
पीपल का गाछ लिखूं
या लिखूं कि
महके हैं आमों पर बौर

दहकता पलाश लिखूं ,
फागुन की बात लिखूं
या लिखूं
रंग भरे सपने कुछ और

सरसों की लाज लिखूं
बरसों की याद लिखूं
या लिखूं कि,
भीगी है आँखों की कोर

पिछले अनुबंध लिखूं ,
बासंती छंद लिखूं
या लिखूं ...
तुम्हारा नाम ......
एक बार और .

सोमवार, 16 मार्च 2009

ब्लॉग मित्रों ,
आप लोगों की उत्साहवर्धक टिप्पणियों के प्रताप से मुझमें भी आपनी नई-पुरानी रचनाओं को पोस्ट किए चले जाने का चस्का लग गया है सो आपलोग अब अपनी करनी का फल प्राप्त करो..... और एक रचना झेलो -

मैं

गर्म ,तपती हुई रेत पर ,
पानी की एक बूँद,
मैं ,
गिरी तो क्षण भर में ,
समाप्त हो गई ।
समाप्त हो गया मेरा अस्तित्व ।

कौन जाने
क्यों ...?
कहाँ ...?
कब ...?
कैसे ...?
गिरी वह बूँद ,
और फ़िर मरुभूमि में गिरकर ,
क्या बनी...?
मैं भी नहीं जानती मेरा क्या होगा ।
बदल बन के बरसने की सामर्थ्य नहीं मुझमें ।
शायद कहीं ....
फूलों पर शबनम की बूँद बनकर ,
या फ़िर
दूब की नोक पर तुहिन कण सी ,
चमकुंगी केवल सुबह -सवेरे ।

लेकिन .......
कौन जानेगा मुझे ...?
पहचानेगा मुझे ...?
कि
मैं वही मरू भूमि में गिर पड़ी एक बूँद हूँ ।

किंतु तुम पहचान लेना ।
हर एक बूँद ,जो ओस है या आंसू है ,
मेरा ही सर्वांश है ,यह जान लेना ।

और फ़िर तुम देखना ,
कैसे झरते -झरते हंसूंगी मैं ,
और हंसते -हंसते झरूँगी मैं .

शनिवार, 14 मार्च 2009

मौसम

यहाँ बेवक्त ,बेमौसम
बदल छा गए हैं ।
सब कुछ ढंका -ढंका सा है ,
मन भी ।

हालाँकि शहर के बीचों बीच
अब भी कई पलाश हैं जो दहक रहे हैं ,
वैसे मौसम तो दहकते पलाशों का ही है
तुम्हारे शहर का मौसम कैसा है ...?

ढंके ढंके से इस मौसम में
एक आंच से ,
कुछ अनदेखे ,अनजाने
अनबुने और शायद अनचाहे भी
खदबदा रहे हैं सपने

वैसे ये सपनों का मौसम तो नहीं ।
तुम्हारे यहाँ मौसम कैसा है ...?
मन का .

शुक्रवार, 6 मार्च 2009

होली होली ,होली

दोस्तों होली आ गई है
होली याने रंगों का त्यौहार ,मस्ती का, उल्लास का और सद्भावना का त्यौहार इस रंगों बहरे त्यौहार पर आप सबको मेरी और से रंगारंग शुभकामनायें ,इस गीत के साथ

सोमवार, 2 मार्च 2009

"योग्यतम ही रह पाता है जीवित "
सार्थक करते हुए इस सत्य को ,
अब तक बचा है प्यार
इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में

मानवता का यह सबसे योग्य पुत्र
हमेशा रहेगा जीवित
आदमी के भीतर |

जब तक के
दुलारना बंद नही कर देती माएं ,
बच्चों को

जब तक के
बंद नही कर देती बहने
अपने हिस्से की मिठाई ,
भाई को देना |

जब तक के
बंद नही कर देती
लड़कियाँ
ऑंखें पोंछना विदा लेते वक्त ,
किसी प्रियजन से

तब तक
बचा रहेगा प्यार
ये उम्मीद नही विश्वास है मेरा
क्योंकि ,
झुठलाया नहीं जा सका है अब तक
योग्यतम की उत्तरजीविता को