शनिवार, 27 जून 2009

आउंगी ज़रूर मैं

आउंगी जरुर मैं

आउंगी जरुर मैं ,
पर
प्रतीक्षा मत करना मेरी

किसी भी दिन अचानक
आकर खड़ी हो जाउंगी ,
तुम्हारे सर्वथा निजी एकांत में
सोख लूंगी तुम्हारे भीतर की निस्तब्धता ,
अपनी उन्मुक्त हँसी से
मुस्कुराये बिना नहीं रह सकोगे तुम


आउंगी जरुर मैं
पर ,
प्रतीक्षा मत करना मेरी

किसी भी दिन अचानक
झाँकने लगूंगी ,मुडे -तुडे पन्नों से
कविता की पुरानी पुस्तक के .
खोल दूंगी यादों की खिड़कियाँ
कविता की पंक्तियों से
पढ़े बिना नही रह सकोगे तुम

आउंगी जरुर मैं
पर
प्रतीक्षा मत करना म्रेरी

किसी भी दिन अचानक
गूंजने लगूंगी तुम्हारे हृदय में ,
वंशी की मधुर तान सी
घोल दूंगी रस
तुम्हारे प्राणों में ,मन में
गुनगुनाये बिना नहीं रह सकोगे तुम

आउंगी जरुर मैं
पर
प्रतीक्षा मत करना मेरी

हो सके तो
बस
खुले रखना द्वार
हृदय के
कि
मैं आकर खड़ी हो सकूँ

हो सके तो
बस
सम्हाल कर रखना
कविता की पुरानी पुस्तक
कि
झांक सकूँ उ़सके पन्नों से

हो सके तो
बस
सहेज कर रखना
मन की बांसुरी
कि
मैं छेड़ सकूँ कोई धुन

आउंगी जरुर मैं
पर
प्रतीक्षा मत करना मेरी

शनिवार, 13 जून 2009

बदल बन जायें


आओ हम बादल बन जायें
प्रेम की रिमझिम फुहारों से ,
धो डालें उस धूल को ,
जो
वृक्षों के पत्तों पर ,फूलों पर ,डालों पर जम गई है
और जमी है ,हम सब के अन्तर में , कटुता बन कर
आओ हम बादल बन जायें

आओ हम बादल बन जायें
ताकि भुला सकें हम आपस का वैमनस्य ,
जो
बांटता है हमको ,
धर्मों में ,वर्णों में ,
जाती
में ,वर्गों में
और
बाँट देता है , आदमी को आदमी से

आओ
हम बादल बन जायें

आओ
हम बादल बन जायें
क्योंकि बादल तो बस उमड़ घुमड़ कर बरसना जानता है
वह नही जानता के उसके बरसने से
राजा भीगेगा या फ़कीर
बादल
का तो बस एक ही धर्म
उमडना ,घुमडना ,बरसना ...... और बरसना

तो आओ हम बादल बन जायें .