शुक्रवार, 15 मई 2009

टुकडा -टुकडा जिंदगी

चलो ,इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें
एक चादर ,
जो कभी तेरा लिबास बन जाए
कभी मेरा लिबास बन जाए
और जब वक्त की धूप
हमारे सर पर आए ,
तो ये चादर हम दोनों का सरमाया बन जाए

चलो ,इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें
एक चादर ,जिसे ओढ़ कर हम
अपनी सपनों की दुनिया में खो जायें
जहाँ .......
एक शांत बहती नदी हो
जहाँ ...........
पुराने मन्दिर हों
जहाँ चाँद -तारों भरा आकाश हो
और जब मैं नींद से जागूँ ,
तो तू मेरे पास हो

5 टिप्‍पणियां:

  1. वाह सीमा जी............कितनी लाजवाब कल्पना है आपकी..........टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
    एक चादर सी लें .................. लिबास बना ले फिर चादर का...........जिंदगी सचमुच टुकडा टुकडा ही होती है.......... और मन belagaam घोडे की तरह दोड़ता रहता है

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  2. कोमल कल्पना!! बहुत उम्दा!!

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  3. seema ji , bahut hi sundar kavita .. shaandar bhaav..swapan se bhari hui zindagi....

    kya khoob likha hai..

    badhai sweekar karen..

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  4. अद्भुत...खूबसूरत...गुलजारिश

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  5. और जब मैं नींद से जागूँ ,
    तो तू मेरे पास हो ।

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