शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009
एक जंगली बेल की तरह फैलता हुआ मेरा प्यार ,
तुमने उसको बोनसाई बनाना चाहा हर बार ।
खुशियों की जड़ें काटीं
खिलखिलाहटों के पत्ते तोडे ।
लगाया एक उथली कमाना के गमले में ।
सींचा सुविधाओं की कृत्रिम नमी से ।
अफ़सोस लेकिन,
तुम्हारा हर यतन गया बेकार ।
जंगली बेल की तरह फैलता हुआ मेरा प्यार ।
तुमने उसको बोनसाई बनाना चाहा हर बार ।
तुम्हारी ऐसी कोशिशों से भी,
मेरा प्यार मर -मर के जीता रहा ।
सुविधाओं के बूंद -बूंद पानी को ,
अमृत समझ पीता रहा ,
लेकिन उसमें कभी न फूटे ,
कोमल -कोमल नन्हें पात,
न ही फूलों से भरा ,
प्रेमलता का कोमल गात।
कैसे समझाती मैं तुम्हें ,
की जंगली बेलों की बस इतनी ही जरूरत है ,
जड़ों को मिले नमी और ताने को विस्तार ।
जंगली बेल की तरह फैलता हुआ मेरा प्यार .
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seema,
जवाब देंहटाएंthis is one of the best writings i read.
bahut sundar upmaaon dwara tumne ,kavita ko man se joda hai ..
तुम्हारी ऐसी कोशिशों से भी,
मेरा प्यार मर -मर के जीता रहा ।
सुविधाओं के बूंद -बूंद पानी को ,
अमृत समझ पीता रहा ,
in pankhitiyon men to jaise pyaar ki pyaas sama gayi ho ho..
bahut sundar
behtreen ,
badhai sweekar kariye..
Vijay
hyderabad
09849746500
dhanywad vijay ji,ak antral ke bad aapke sandesh mile .kya aapko meri kahani mili.
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर !!!!!!!! विजय जी की बातों से मैं पूर्ण रूप से सहमत हूँ.
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