मंगलवार, 24 मार्च 2009

क्या लिखूं

नीला आकाश लिखूं ,
पीपल का गाछ लिखूं
या लिखूं कि
महके हैं आमों पर बौर

दहकता पलाश लिखूं ,
फागुन की बात लिखूं
या लिखूं
रंग भरे सपने कुछ और

सरसों की लाज लिखूं
बरसों की याद लिखूं
या लिखूं कि,
भीगी है आँखों की कोर

पिछले अनुबंध लिखूं ,
बासंती छंद लिखूं
या लिखूं ...
तुम्हारा नाम ......
एक बार और .

20 टिप्‍पणियां:

  1. सरसों की लाज लिखूं
    बरसों की याद लिखूं
    या लिखूं कि,
    भीगी है आँखों की कोर । pahli baar apke blog par aae hu....bahut achcha laga ....

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  2. दिल और शब्दों का गहरा तालमेल दिखाया आपने

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  3. सरसों की लाज लिखूं
    बरसों की याद लिखूं
    या लिखूं कि,
    भीगी है आँखों की कोर ।

    बहुत ख़ूब.

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  4. बहुत खूब। कहते हैं कि-

    रिश्तों का इतिहास लिखेंगे, पतझड़ को मधुमास लिखेंगे।
    वक्त जहाँ है वहीं रुकेगा, जब हम किस्सा खास लिखेंगे।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  5. सच कहा है आपने,,,,,,,,,,,,
    बस एक नाम ही काफी है, इन सब औए बहुत से और बातों के लिए......
    सुन्दर रचना है

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  6. वाह !! अतिसुन्दर भावाभिव्यक्ति !!
    मन बाँध लिया आपकी इस सुन्दर रचना ने...
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी इस रचना के लिए आभार.

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  7. दहकता पलाश लिखूं ,
    फागुन की बात लिखूं
    या लिखूं
    रंग भरे सपने कुछ और ।
    लाज लिखूं
    बरसों की याद लिखूं
    या लिखूं कि,
    भीगी है आँखों की
    आपने तो सब कुछ ही लिख दिया. बधाई.

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  8. seema ji ,

    aapne itni sundar kavita likhi hai ki kya kahun , tareef ke liye shabd nahi hai .. poora ka poora mausam chaaya hua hai aapki kavita me... aur un mausamon se jude hui hai ,bhaavnayeen ..

    meri badhai sweekar karen ..

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  9. बेहतरीन भावाभिव्यक्ति के लिये बधाई स्वीकारें

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  10. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी
    पीपल का गाछ लिखूं
    सरसों की लाज लिखूं
    वाह वाह

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  11. एक सार्थक और सफल कविता ......
    देशज शैली ...सोने पर सुहागा .....
    भाव और कला दोनों एक-साथ .
    बधाई .
    ---मुफलिस---

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  12. सीमा जी बहुत सुन्दर लिखती हैं आप !भावों को झूला सा झुलाती एक मोहक रचना !
    क्या लिखूं और मैं दौनों ही मार्मिक हैं !
    और फ़िर तुम देखना ,
    कैसे झरते -झरते हंसूंगी मैं ,
    और हंसते -हंसते झरूँगी मैं ! वाह,मन जुड़ा गया !

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  13. kya khubsurat ehsaas piroye hai seema ji waah dil tak bhav mil gaye.behad sunder

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  14. आप सब की प्यार भरी टिप्पणियों से मैं अभिभूत हूँ .आप सबका हार्दिक आभार. स्नेह बनाये रखिये

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  15. पिछले अनुबंध लिखूं ,
    बासंती छंद लिखूं
    या लिखूं ...
    तुम्हारा नाम ......
    एक बार और .

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