
गुलमोहर के रंग फीके हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .
धूप के भी तीर तीखे हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .
तुम नहीं हो, और ये लम्बी दोपहरी
आँख की कोरों पे आके बूँद ठहरी .
कब गिरेगी, ना गिरेगी कौन जाने ?
कौन उंगली पर सम्हाले ....?
तुम नहीं हो .
गुलमोहर के रंग फीके हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .
तुम नहीं हो .......शाम थक जाती है अक्सर
फिर धधकती सेज पर सोती है थककर
सोचती हूँ रात गहरी है ? ..... के मेरी पीर गहरी ?
कौन सीने से लगा ले .........?
तुम नहीं हो .
धूप के भी तीर तीखे हैं यहाँ पर ,
तुम नहीं हो .
तुम नहीं हो भोर का पहला पहर है
कहीं सोया, कहीं जागा सा शहर है
एक लम्बी सी सड़क पर चल रही हूँ मैं अकेली .
कौन मेरा हाथ थामे .....?
तुम नहीं हो .
तुम नहीं हो ,प्रणय पथ का ये अनोखा ही सफ़र है
मैं यहाँ और दूर कितना हमसफ़र है
दूर रहकर साथ चलना ,साथ रहकर दूर होना .
कौन समझेगा ये रोना ...?
तुम नहीं हो
waah bahut sundar
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएं"तुम नहीं हो .......शाम थक जाती है अक्सर
जवाब देंहटाएंफिर धधकती सेज पर सोती है थककर
सोचती हूँ रात गहरी है ? ..... के मेरी पीर गहरी ?
कौन सीने से लगा ले .........?"
शब्द और भावों का अच्छा संगम
nice
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंiisanuii.blogspot.com
सुन्दर शब्द चित्र खींचा है आपने
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण
सीमा जी ;
जवाब देंहटाएंनमस्कार.
बहुत दिनों बाद आपकी कविता पढने को मिली. और हमेशा की तरह आपने प्रकृति के माध्यम से नायिका के मन की बात को बहुत ही अच्छे शब्दों के द्वारा अपनी इस सुन्दर कविता में प्रस्तुत किया है .. आपको दिल से बधाई .. विरह की व्यथा को इतनी अच्छी तरह से उजागर करने की क्षमता सिर्फ आप में ही है जी .......आभार और बधाई....और आपसे ये भी निवेदन है की ,मैंने भी पिछले दिनों एक -दो कविता लिखी है , अगर आपका आशीर्वाद मिल जाए तो बहुत कृपा होंगी . धन्यवाद्...!
nice
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना.....
जवाब देंहटाएंतुम नहीं हो .....!
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