शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

मौसम


मोरपंखी दिन हुए हैं ,सिंदूरी शाम ।
सांवरी सुहागन रात,
चांदनी चादर ओढे ,
सिमट -सिमट जाती है ।
आसमान के सीने में छिपाकर चेहरा ,
गाती है ,होंठों ही होंठो में ,
प्रियतम का नाम।

मोरपंखी दिन हुए हैं ,सिंदूरी शाम ।



कोहरे मैं लिपटी सुबह ,
थमा जाती है ,चाय का प्याला ।
उन्घियाता सूरज भी ,जल्दी से मुहं धोकर
चल देता शाला ।
धुप किसी मृग छौने सी ,
भरती है चौकडी ।
कभी आँगन ,कभी ओसारे
कभी चढ़ जाती बाम।

मोरपंखी दिन हुए हैं ,सिंदूरी शाम ।

ऐसे में मन को भी ,
कोई समझाए क्या ,
जाकर न लौटे जो,
वो याद भी न आयें क्या ।
हवा ...कहीं मिल जायें वो जो तुम्हें ,
कह देना उनसे तुम मेरा प्रणाम ।

मोरपंखी दिन हुए हैं सिंदूरी शाम

2 टिप्‍पणियां:

  1. seema ,

    this is outstanding work of writing, itne saare bimbo ke saath tumne kavita me jo prem ka ras ghola hai .. wo aaj ki subah ko aur rangeen bana gayi..
    हवा ...कहीं मिल जायें वो जो तुम्हें ,
    कह देना उनसे तुम मेरा प्रणाम ।

    upar se ye punch lines... very touch with deep feelings.

    meri dil se badhai sweekar karen..
    vijay

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  2. बहुत सुंदर उपमाएँ. भावः और कला दोनों ही पक्ष बेहद सुंदर.

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